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भू॒रि॒दा ह्यसि॑ श्रु॒तः पु॑रु॒त्रा शू॑र वृत्रहन्। आ नो॑ भजस्व॒ राध॑सि ॥२१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūridā hy asi śrutaḥ purutrā śūra vṛtrahan | ā no bhajasva rādhasi ||

पद पाठ

भू॒रि॒ऽदाः। हि। असि॑। श्रु॒तः। पु॒रु॒ऽत्रा। शू॒र॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। आ। नः॒। भ॒ज॒स्व॒। राध॑सि ॥२१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:21 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:30» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) शत्रुओं के नाश करनेवाले (वृत्रहन्) धन को प्राप्त राजन् ! आप (हि) जिससे (भूरिदाः) बहुत देनेवाले (असि) हो इससे (पुरुत्रा) बहुतों में प्रतिष्ठित और (श्रुतः) सब जगह प्रसिद्ध यशवाले हो जिससे आप (नः) हम लोगों को (राधसि) अच्छे प्रकार साधते हैं, इससे हम लोगों को (आ, भजस्व) अच्छे प्रकार सेवो ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो इस संसार में बहुत देनेवाला होता है, वही सम्पूर्ण दिशाओं में कीर्तियुक्त होता है ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे शूर वृत्रहन् ! राजँस्त्वं हि भूरिदा असि तस्मात् पुरुत्रा श्रुतोऽसि यतस्त्वं नो राधसि तस्मादस्माना भजस्व ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूरिदाः) बहुप्रदाः (हि) यतः (असि) (श्रुतः) सर्वत्र प्रसिद्धकीर्त्तिः (पुरुत्रा) बहुषु प्रतिष्ठितः (शूर) शत्रुहन्तः (वृत्रहन्) प्राप्तधन (आ) (नः) अस्मान् (भजस्व) सेवस्व (राधसि) संसाध्नोसि ॥२१॥
भावार्थभाषाः - योऽत्र जगति बहुदाता भवति स एव सर्वदिक्कीर्तिर्भवति ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात जो दाता असतो त्याची दिगंतरी कीर्ती पसरते. ॥ २१ ॥